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अध्यात्मिक जागरूकता। Spiritual Awakening

 

अध्यात्मिक जागरूकता

नमस्कार मित्रों, आपके जीवन में अध्यातम की जागरूकता की शुरूवात  जीवन के किसी भी पडाव में हो सकती है। यह एक यात्रा है जो सभी के लिए भिन्न है, पर उसके बावजूद इसके काफी ऐसे आयाम हैं जो सभी के लिए काफी हद तक समान होते हैं।

आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ छोटे बच्चे अपने जीवन के उस शुरूवाती दैर में ही भगवान तथा भक्ति के प्रति रूचि उत्पन्न कर लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ यह भावना कईयों में यौवन  काल के दौरान भी आती है। पर उनकी संख्या काफी कम है। और तीसरे जो बुढापे में ईश्वर में रूचि उत्पन्न कर ईश्वर का नाम स्मरण शुरू करते हैं। और अंतिम वाले तो सबसे ज्यादा महान हैं जिन्हें जन्म से मरण तक भगवान से कोई लेना देना नहीं होता।

यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है। जितना जल्दी हमारे जीवन में अध्यात्म की शुरूवात होती है, हमारी अध्यात्म के प्रति रूचि व ईमानदारी उतनी ही शुद्ध होती है। इसे इस तरह से समझने का प्रयत्न करते हैं, जैसे हम सब जानते हैं कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं। अगर उनको कम आयु में ही अच्छे संस्कार व ज्ञान दिया जाए तो वे अपना और अपने कुल का उद्धार कर देते हैं। जवानी के समय में काफी कम संभावना है कि व्यक्ति की अध्यात्म के प्रति ईमानदारी सच्ची हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकतर लोग जवानी के दौरान अध्यात्म के प्रति आकर्षित होते हैं, जिसका मुख्य कारण संसारिक जीवन में उनकी हार होता है। वहीं बुढापे में अध्यात्म में आने वाले लोगों का कारण मुख्यतः भय होता है। भय उनके द्वारा जीवन भर किए गए कृत्यों के प्रतिफल का। उनसे बचने के लिए वे अध्यात्म का मार्ग चुनते हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि अपने कर्मों के फल से बचने का कोई भी रास्ता नहीं है। अध्यात्म द्वारा तो हम में वह ज्ञान पैदा होता है जो हमारे आगामी कार्यों को सही रखने में हमारी सहायता करता है। अंतिम श्रेणी के लोग जिन्हें अध्यात्म से कोई लेना देना नहीं होता, वे केवल ईश्वर द्वारा रचित इस संसारिक माया में उलझे रहते हैं। उनका ध्यान कभी इस तरफ जा ही नहीं पाता कि ये मनुष्य का जीवन हमें इसलिए मिला है ताकि हमारी जीवात्मा इस जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो सके। पर इस श्रेणी के लोग माया के सुख दुख से वशीभूत होते रहते हैं और इसी में उलझे रहते हैं।

समझदारी तो इसी में है कि हमारे जीवन के हर पहलू में ईमानदारी हो। फिर वो चाहे अध्यात्म की ही बात क्यों न हो। ईमानदारी से अध्यात्मिक जीवन जीते हुए हम अपनी दिव्यात्मा को जन्म मरण के चक्र से मुक्त तो करवा ही सकते हैं, साथ ही साथ अपने इस वर्तमान जीवन को भी सफल बना सकते हैं।


अब बात करते हैं अध्यात्म में आगे बढने के लिए कुछ आवश्यक कदमों के बारे में।

1. स्व चिंतन – 

स्व चिंतन से अभिप्राय है कि हम अपने विचारों, शब्दों, मान्यताओं, व्यवहार आदि के बारे में चिंतन करें और इसके प्रति जागरूक रहें। हमें पूर्ण रूप से साफ होना चाहिए कि हम जो बोल रहे हैं, जो सोच रहे हैं वो क्यों बोल और सोच रहे हैं। अधिकांश लोगों को यह अहसास भी नहीं होता कि वे अपने जीवन में क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं और क्यों सोच रहे हैं। ऐसा न करें, स्वयं के प्रति जागरूक बनें। यह हमारा अध्यात्म की तरफ पहला कदम होगा।

2. ज्ञान की तलाश – 

हमें स्वयं को ऐसा बना लेना है कि हमें हमेशा सत्य और ज्ञान की भूख लगती रहे। कभी भी हमारे मन में यह अभिमान न आए कि हमें तो सब कुछ पता है। यह एक मूर्खता की निशानी है। सदैव ज्ञान अर्जन करने से हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएँ स्वस्थ रहती है और सत्य के साथ हम अध्यात्म के पथ पर आगे बढते हैं।

3. आसक्तियों को त्यागना – 

हमारे जीवन में आसक्तियाँ हमारे जीवन के प्रति मोह का कारण होती हैं। इनसे निजात पाना काफी आवश्यक है। जब तक हम परिवार, लोग, समाज, वस्तुओं इत्यादि से मोह ग्रसित रहेंगे, हम कभी भी सच्चाई को नहीं देख पाएँगे। और इसके फलस्वरूप हमारा सारा जीवन इन्हें के पीछे भागने में बीत जाएगा और मृत्यु शैय्या पर हमें एहसास होगा कि क्यों हमने इन भौतिक लोगों और वस्तुओं के मोह में अपना यह अनमोल जीवन व्यर्थ किया। इससे अच्छा है कि समय रहता सत्य से अवगत हो जाएँ। और अध्यात्मिक जीवन जी कर इस जीवन को सफल बनाएँ।

 

अध्यात्मिक जीवन का अर्थ यह नहीं है कि आप सन्यास ले लें और घर छोड दें। आध्यात्मिक जीवन का अर्थ है अपने विचारों और कर्मों में स्वयं को बदलना और बेहतर बनाना।

जय श्री राम।।

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