कर्म
क्या कर्म ही पूजा है
हमें अपने जीवन में भिन्न भिन्न स्तोत्रों से कई बार सुनने को मिलता है कि कर्म ही पूजा है और हम बिना कुछ सोचे समझे और जाने, कर्म करने निकल पडते हैं। क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश भी की है कि क्या यह सच है, अगर सच है तो क्या हर प्रकार का कर्म पूजा है, अगर नहीं तो किस प्रकार का कर्म पूजा है।
यह सब तो बाद की बातें हैं, अभी हमें यह जानना आवश्यक है कि सच में कर्म करना पूजा है या नहीं। अगर यह सच है तो ऐसा कहाँ लिखा है।
हिन्दू मान्यताएँ मुख्यत: शास्त्रों में वर्णित तथ्यों पर आधारित होती है। आपको यह जान कर बहुत हैरानी होगी कि हिन्दू शास्त्रों की सबसे प्रमुख पुस्तक श्रीमदभगवतगीता में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि कर्म ही पूजा है और न ही किसी शास्त्र मे ऐसा लिखा है। फिर हम पता नहीं क्यों बिना जाने समझे ही कर्म करने पर सारा ध्यान केन्द्रित करके कर्म-प्रधान जीवन जीना शुरू कर देते हैं।
हमें यह जानना बहुत आवश्यक है कि कर्म क्या है। कर्म वह है जो हमें कर्म फल के बन्धन में बाँधे रखता है। जिसके फल स्वरूप हम अपने कर्मों के अनुसार सुख अथवा दुख भोगते हैं। ये कर्म ही हमें जीवन मृत्यु के बन्धनों में बाँधे रखते हैं। पर सामान्य मनुष्य अपना भौतिक जीवन के नशे में कभी इस सच्चाई को देख ही नही पाता।
कर्म क्या है
जो हम करते है वह कर्म कहलाता है पर यह इतना सरलता से नहीं समझा जा सकता। कर्म असल में हमारी मनोस्थिति को दर्शाता है। जिसके कारण हमारे कर्मों का निर्धारण होता है और फलस्वरूप हमें कर्म-फल प्राप्त होता है। हमारे कर्मों से ही यह ज्ञात होता है कि हम कितना काम, क्रोध, मोह आदि इन्द्रियतृप्ति के विष्यों में फंसे हुए है। इसी से हमारे मोक्ष का निर्धारण होता है।
मोक्ष क्या है
सरल शब्दों में मोक्ष का अर्थ होता है- जन्म मरण के चक्र अर्थात् जीवन चक्र से मुक्ति। यह पूर्णतया हमारे कर्मों पर आधारित होता है कि हमें कब मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसलिए हमेशा सोच-समझ कर ही कर्मो का चुनाव करना चाहिए।
श्रीमदभगवतगीता के अनुसार कर्म
गीता के अनुसार कर्म दो प्रकार के होते हैः
सकाम कर्म
निष्काम कर्म
सकाम कर्म
सकाम कर्म वे होते है जिनको करते समय व्यक्ति उसके परिणाम की कामना करता है। उसे पता होता है कि यह कर्म करने से मुझे क्या प्राप्त होगा। ऐसे कर्म ही व्यक्ति को जन्म मरण के बन्धन में बाँधे रखते है। यही हमारे दुखों का मूल कारण होते है। इस लिए हमें इनसे सदा दूर रहना चाहिए।
निष्काम कर्म
निष्काम कर्म वे होते है जिसमे हम कर्म तो करते है पर उसके परिणाम में हमारा कोई निजी लाभ निहित नहीं होता। इसका अर्थ यह कदापि नही कि हम बिना सोचे समझे अपने कर्मों का चुनाव करने लग जाए। इसमे सिर्फ वही कर्म सम्मिलित होते है जो धर्म के पथ पर हो। जो ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो। जो सत्य के मार्ग पर हमें अग्रसर करें। हो सकता है कि भौतिक जीवन में हमे उनसे कुछ लाभ न हो, या फिर हानि भी हो। पर आध्यात्मिक तल पर वे हमारा उद्धार ही करते हैं।
इसमे हम जो भी कार्य करते है वे हमे ईश्वर को अर्थात् कृष्ण को समर्पित करने होते है। हम कृष्ण के लिए और कृष्ण की इच्छा से कार्य करते हैं। अपने सुख-दुःख को अनदेखा करके सत्य के मार्ग पर अग्रसर होते जाते है। इस प्रकार आध्यात्मिक जीवन जीते हुए उसमे सफलता प्राप्त करते हुए हम ईश्वर को प्राप्त होते है और इसी प्रकार मनुष्य जीवन-मृत्यु के बन्धनो से मुक्त होता है जिसे साधारण भाषा में मोक्ष कहा जाता है।
रहा प्रश्न – कर्म ही पूजा है या नही, तो इसका उत्तर यही उचित है कि-
हमे कर्म करने और न करने पर ध्यान देना ही नही चाहिए। हमे सिर्फ भगवान को समर्पित होना चाहिए फिर उसमे हमे जो भी करना पडे वो सब उचित है और वही सब से श्रेष्ठ है। भक्ति में हमे जो भी कर्म करने पडे, करने चाहिए।
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